रविवार, 15 नवंबर 2015

मन्ज़र भोपाली: ज़मीन पर



दौलत का आजकल है इजारा ज़मीन पर
दुश्वार हो गया है गुज़ारा ज़मीन पर।

आँचल न भर सकेंगे सितारों से आपका
हम आदमी हैं घर है हमारा ज़मीन पर।

यादें तुम्हारी ख़्वाब तुम्हारे तुम्हारा ग़म
इन मौसमों ने हमको संवारा ज़मीन पर।

टूटी न आसमां से क़यामत कोई मगर
इन्सां ने अपने आपको मारा ज़मीन पर।

फिर चलिये क़रबला की तरफ नक़दे-जां लिये
मिटने लगा निशान हमारा ज़मीन पर।

एक ज़ान है सो वो भी अमानत उसी की है
कुछ भी नहीं हमारा तुम्हारा ज़मीन पर।

मन्ज़र हमें ज़हान की दौलत से क्या गरज़
माँ की दुआ है सहारा ज़मीन पर।

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